पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार योगिता चौरसिया की एक ग़ज़ल:
दुनिया के जल्लादों से, तुझे बिटिया बचा न सके।
ममता को अपनी, तेरी
राहो मे हम बिछा न सके।।
गुलशन के बहार मे, पतझड़
आने रोक न सके।
ये जख्म ऐसा है कि, किसी को
दिखा भी न सके।।
मुद्दतो का गम ये है,
बिटिया आज जान न ले ले।
कोशिश करके भी, ये
बिटिया भूला हम न सके।।
वीरंगना थी अंत तक लड़ी,
बिटिया बचा न सके।
चीखी, चिल्लाई, रोई, होगी, बिटिया
सुरक्षा दे न सके।।
मातम का आलम, अब
समाचार की सुर्खियां रहा।
हवस के दरिंदों की करतूतों से, अस्तित्व बचा सकें।।
कैसा करें, कैसे
बेटियों को पढ़ाये, और कैसे
बचाये।
नंपुसक समाज, कमजोर कानून, कुछ कर
न सके।।
खुद को मानव कहने वाले,
दानव ये मक्कार रहे।
"योगिता"
की कलम रो दी, रुक रुक
जो लिख सके।।