पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार पुनीत गोयल की एक कविता जिसका
शीर्षक है “...के लिए”:
काश कोई रोक ले अगर
चांद को एक रात के लिए,
दिल बहुत तरस रहा
है
उनसे एक मुलाक़ात के लिए,
ज्यादा तो नहीं
मगर बस
लम्बी एक बात के लिए
कुछ सुनना कुछ कहना दिल में बाकी रह गया
धड़कने मचल रही है एक जज़्बात के लिए,
पता नहीं क्या है
हो रहा उदासी या खुशी का आलम छा रहा है
प्यार भरा है आहों में भी
यादों की उस बारात के लिए
काश वो लम्हें लौट आए
जब हम दोनों ही तरसा
करते थे पुनीत
एक दुसरे के साथ के लिए।
काश कोई रोक ले अगर
चांद को एक रात के लिए,
उनसे एक मुलाक़ात के लिए,
लम्बी एक बात के लिए
कुछ सुनना कुछ कहना दिल में बाकी रह गया
धड़कने मचल रही है एक जज़्बात के लिए,
प्यार भरा है आहों में भी
यादों की उस बारात के लिए
काश वो लम्हें लौट आए
जब हम दोनों ही तरसा
करते थे पुनीत
एक दुसरे के साथ के लिए।