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कविता: राम बनवास /कैकई कोप भवन (अमित कुमार बिजनौरी, स्योहारा बिजनौर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार अमित कुमार बिजनौरी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “राम बनवास /कैकई कोप भवन”:
 
सुनो कहनी
रामलीला की
फिर से सुनता हूँ
जब
पहुंची कोप भवन में
कैकई
और खाना पीना
छोड़ दिया
पहुँचाई  दासी
राजदरबार में
राजा को रानी
का दिया हाल सुना
और
राजादशरथ
पहुँच गए
कोप भवन में
जाना कैकई हाल
गुमसुम सुध बुध
खोई
बहुत देर बात बोली
हे प्राण नाथ तुमने
मुझे
वचन दीये थे दो
और समय आ गया
मुझे वचन दे दो आज
हे प्रियवर माँगो
सब कुछ तो है तुम्हारा
हे प्राण नाथ
मुझको देना वचन
सुन राजा दशरथ ने
कहा
हे प्रियवर
प्राण जाए पर वचन
न जाए
हे प्रियवर माँगो
जो तुमको माँगना
और कैकई बोली
हे प्राण नाथ
पहला वचन
राम को दो चौदह वर्ष
बनवास
दूसरा प्रण
मेरे भरत को दो
राजसिंहासन
सुन राजा दशरथ
कुछ और माँगलो
बदले में चाहे
मेरे प्राण माँगलो
प्रतिउत्तर में बोली कैकई
क्या वचन दिये झूठे
और हठ कर बैठी
राजा दशरथ
हो अचंभित
गिरे जमीं पर
मुख से निकला
हाय राम ।
सुन आए राम
मान पिता की
आज्ञा निकले
राम बनवास