Welcome to the Official Web Portal of Lakshyavedh Group of Firms

कविता: मेरी चाहत (सुधीर श्रीवास्तव, गोण्डा, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सुधीर श्रीवास्तव  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मेरी चाहत”:

क्या कहूँ?
शब्द जैसे खो गये हैं
लगता है ऐसे जैसेतुम्हारे
प्यार की बंदिशों में सो गये हैं।
तुम्हारी तारीफों के लिए
शब्द कहाँ से लाऊँ?
शब्द भी इठला के मुझसे
दूर होते जा रहे हैं।
तुम क्या आई जिंदगी
जिंदगी में रंग भर दी,
प्यार के रस घोलकर
जिंदगी मधुमास कर दी।
थी अकेली आई जब तुम
कितने रिश्ते नाते छोड़कर,
मोह में जकड़ा सभी को
बनके जैसे जादूगर।
मेरी हर दुविधा को
पल मेंं तुम हो दूर करती,
तुम तो मेरी जिंदगी में
खुशियों के सौ रंग भरती।
जन्मों जन्मों तक मेरी
संगिनी जीवन बनो,
और न चाहूं किसी को
बस!तुम मेरी चाहत बनो।