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कविता: घुटन (सोनल ओमर, कानपुर, उत्तर प्रदेश)

 
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सोनल ओमर की एक कविता  जिसका शीर्षक है “घुटन”: 

आजकल के संवेदन-शून्य वातावरण में
           मुझे घुटन होती है!
आजकल के इस अमानवीय समय में
           मुझे घुटन होती है!
 
इंसान दूसरों की मजबूरी जाने बिना ही
बदला लेने को तैयार हो जाते हैं।
           ऐसे इंसानों से मुझे घुटन होती है!
 
कुछ जानवर इंसानों के भेष में रहकर
बेज़ुबानों पर जुल्म करते हैं।
          ऐसे जानवरों से मुझे घुटन होती है!
 
बहु-बेटियों की इज्ज़त को तार-तार करने वाले
दरिंदे मुखौटा लगाकर हमारे आस-पास रहते हैं।
          ऐसे दरिंदो से मुझे घुटन होती है!
 
जो सिर्फ स्त्री को मर्यादा में रहने का पाठ पढ़ाते है
खुद अधर्म कर के उसको संस्कार सिखाते हैं।
          ऐसे संस्कारों से मुझे घुटन होती है!
 
जब किसी के संग अच्छा करती हूँ और
बदले में मुझे नफरत मिलती है।
          ऐसी नफरत से मुझे घुटन होती है।
 
सोचती हूँ कभी कि नफरत के बदले नफरत दूँ
पर मेरी अच्छाइयाँ मुझे ऐसा करने नहीं देती।
          ऐसी अच्छाई से मुझे घुटन होती है!
 
इस संसार में सबको बस अपनी पड़ी है
लोग दूसरों की परेशानी को अपना फायदा बनाते।
           ऐसे स्वार्थीपन से मुझे घुटन होती है!
 
जहाँ सही-गलत को छोड़कर
छोटे-बड़े को अधिक अहमियत दी जाती है।
          ऐसी तहज़ीब से मुझे घुटन होती है!
 
बार-बार समझाने के बाद भी अगर
कोई नहीं समझता है।
           ऐसी नासमझी से मुझे घुटन होती है!
 
आजकल के संवेदन-शून्य वातावरण में
           मुझे घुटन होती है!
आजकल के इस अमानवीय समय में
           मुझे घुटन होती है!