पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार सोनल ओमर की एक कविता जिसका
शीर्षक है “घुटन”:
आजकल के संवेदन-शून्य वातावरण में
मुझे घुटन होती है!
आजकल के इस अमानवीय समय में
मुझे घुटन होती है!
बदला लेने को तैयार हो जाते हैं।
ऐसे इंसानों से मुझे घुटन होती है!
बेज़ुबानों पर जुल्म करते हैं।
ऐसे जानवरों से मुझे घुटन होती है!
दरिंदे मुखौटा लगाकर हमारे आस-पास रहते हैं।
ऐसे दरिंदो से मुझे घुटन होती है!
खुद अधर्म कर के उसको संस्कार सिखाते हैं।
ऐसे संस्कारों से मुझे घुटन होती है!
बदले में मुझे नफरत मिलती है।
ऐसी नफरत से मुझे घुटन होती है।
पर मेरी अच्छाइयाँ मुझे ऐसा करने नहीं देती।
ऐसी अच्छाई से मुझे घुटन होती है!
लोग दूसरों की परेशानी को अपना फायदा बनाते।
ऐसे स्वार्थीपन से मुझे घुटन होती है!
छोटे-बड़े को अधिक अहमियत दी जाती है।
ऐसी तहज़ीब से मुझे घुटन होती है!
कोई नहीं समझता है।
ऐसी नासमझी से मुझे घुटन होती है!
मुझे घुटन होती है!
आजकल के इस अमानवीय समय में
मुझे घुटन होती है!