पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रियंका पांडेय त्रिपाठी की एक कविता जिसका
शीर्षक है “मै गंगा मां हूं”:
स्वर्ग से उतरी हूं! मैं हूं बहती धारा!
तुम मुझे मानो तो जग है मुझमें सारा!
हां गंगा मां हूं!
मैं गंगा मां हूं!
धरती को पावन
करती!
मैं निर्मल शीतल बहती!
जन जन की प्यास बुझाती!
धीरज धैर्य की चादर ओढ़े!
ममता का सागर कहलाती!
सबके पाप हूं धोती!
स्वर्ग से उतरी
हूं!मैं हूं बहती धारा!
तुम मुझे मानो तो जग है मुझमें सारा!
हां गंगा मां हूं!
मैं गंगा मां हूं!
शिव शम्भु की जटा
मे शुशोभित!
गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक!
मेरी अविरल धारा बहती!
मै गंगोत्री, यमुनोत्री, मंदाकिनी,भागिरथी!
मैं ही सरस्वती कहलाती!
तुम्हारे कुकर्मो से--
अदृश्य हो गई सरस्वती!
स्वर्ग से उतरी
हूं!मैं हूं बहती धारा!
तुम मुझे मानो तो जग है मुझमें सारा!
हां गंगा मां हूं!
मैं गंगा मां हूं!
ये है पाप पुण्य
की धरती!
जिसमें मै घटती बढ़ती रहती!
कोई पाप की डुबकी लगाता!
कोई पूज के पुण्य कमाता!
कोई मैले कपड़े धुलता!
कोई कचरा फेंक के जाता!
कोई पीर न मेरी समझे!
सब मुझसे ही आस लगते!
स्वर्ग से उतरी
हूं!मैं हूं बहती धारा!
तुम मुझे मानो तो जग है मुझमें सारा!
हां गंगा मां हूं!
मैं गंगा मां हूं!
स्वर्ग से उतरी हूं! मैं हूं बहती धारा!
तुम मुझे मानो तो जग है मुझमें सारा!
हां गंगा मां हूं!
मैं गंगा मां हूं!
मैं निर्मल शीतल बहती!
जन जन की प्यास बुझाती!
धीरज धैर्य की चादर ओढ़े!
ममता का सागर कहलाती!
सबके पाप हूं धोती!
तुम मुझे मानो तो जग है मुझमें सारा!
हां गंगा मां हूं!
मैं गंगा मां हूं!
गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक!
मेरी अविरल धारा बहती!
मै गंगोत्री, यमुनोत्री, मंदाकिनी,भागिरथी!
मैं ही सरस्वती कहलाती!
तुम्हारे कुकर्मो से--
अदृश्य हो गई सरस्वती!
तुम मुझे मानो तो जग है मुझमें सारा!
हां गंगा मां हूं!
मैं गंगा मां हूं!
जिसमें मै घटती बढ़ती रहती!
कोई पाप की डुबकी लगाता!
कोई पूज के पुण्य कमाता!
कोई मैले कपड़े धुलता!
कोई कचरा फेंक के जाता!
कोई पीर न मेरी समझे!
सब मुझसे ही आस लगते!
तुम मुझे मानो तो जग है मुझमें सारा!
हां गंगा मां हूं!
मैं गंगा मां हूं!