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कविता: भाई दूज (बंदना पंचाल, अहमदाबाद, गुजरात)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार बंदना पंचाल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “भाई दूज”: 

ना मांगू मैं सोना - चांदी
मांगू ना मैं कोई उपहार।
भाई दूज पर आना भैया,
बस करना इतना उपकार।
 
थाल सजाए बैठी हूं भैया,
कुमकुम, चावल मिठाई से।
करूंगी  मै ढेर सारी बातें,
अपने  प्यारे भाई से ।
 
पलकों को बिछाकर मैं
करूंगी तुम्हारा इंतजार।
भाई दूज पर आना भैया,
बस करना इतना उपकार।
 
मन से कामना करती बहना
जीवन में सदा खुशहाली हो।
दिन हो तुम्हारे ईद के जैसे,
हर रात जगमग दिवाली हो ।
 
माता - पिता की जैसे ही
करते रहना तुम मुझको प्यार।
भाई दूज पर आना भैया,
बस करना इतना उपकार।
 
भैया तुम हो पिता की तरह
भाभी मां की परछाई है।
तुम सब की मुस्कान ने ही
बाबुल की बगिया महकाई है।
 
यूं ही हमेशा रहे महकता,
मेरे बाबुल का घर - द्वार।
भाई दूज पर आना भैया,
बस करना इतना उपकार।