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कविता: नमन करूं (सपना, औरैया, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सपना की एक कविता  जिसका शीर्षक है “नमन करूं”:
 
नमन करूं मैं ,करूं मैं वंदन,
मस्तक तिलक, लगाऊं चन्दन।
स्वागत करूं मैं श्रोताओं का,
पाठकों का करूं अभिनन्दन।
 
श्रोताओं बिन महफ़िल सूनी,
हैं गजलें भी सूनी सूनी।
शायर  हैं सब खोए  खोए ,
शायरी भी सूनी सूनी।
 
पाठक बिन रचनाएं सूनी,
हैं कथा कहानी भी सूनी।
लेखक हैं सब  सोए  सोए,
लेखन विद्या भी सूनी।
 
मंच अधूरे कवियों बिन,
कविताएं भी सूनी सूनी।
गजल गीत सब हैं सूने,
जगराते भी सूने सूने।
 
श्रोताओं की वाह वाह देखो,
दिल में जोश है भर देती।
नित नया कुछ रचने की,
हमको प्रेरणा है देती।
 
होते ना यदि पाठक जग में,
लेखक कहां फिर होते।
होते ना  श्रोता महफ़िल में,
शायर फिर कहां होते।
 
एक दूजे से शान हमारी,
एक दूजे से मान हमारा।
एक दूजे से मिलकर ही,
बने साहित्य संसार हमारा।
 
रहें सलामत पाठकगण सब,
श्रोता भी सब रहें सलामत।
रहे होंठो पर मुस्कान सदा ही,
खुशियां उनकी रहें सलामत।
 
नमन करूं मैं ,करूं मैं वंदन,
मस्तक तिलक, लगाऊं चन्दन।
स्वागत करूं मैं श्रोताओं का,
पाठकों का करूं अभिनन्दन।