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कविता: अहसास (रीमा सिंह, अयोध्या नगर, भोपाल, मध्य प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रीमा सिंह की एक कविता  जिसका शीर्षक है “अहसास”:

जिसकी बाहें मैंने थी थामी, उसकी प्यारी सूरत,

बीता पल उन लम्हों में, बडा़ ही था खूबसूरत।

 

नयन मेरे बस देख सके, बाहरी ही दिखावा,

काश की समझ पाती उसके भीतर का छलावा।

 

वक्त उसे गुजारना था, पल दो पल मेरे सँग,

मैं भी पगली प्यार की मारी रँग गयी उसके रँग।

 

मेरे अरमानों का घोट गला, बन बैठा वो कातिल,

करना उसने जो चाहा कर चुका था वो हासिल।

 

मसीहा जिसको माना था वह तो निकला भक्षक,

जीवन जिसको सौंपा था ना बन सका मेरा रक्षक।

 

दोष उसे भी क्यूँ दूँ?  मैं भी कहाँ सही थी,

कोई बहला गया और मैं भी बहक गयी थी।

 

थामा जिसका हाथ था, समझ कर मैंने अपना,

आँख खुली शुक्र है जाग गई, था वो एक सपना।

 

खुद पर यकीन कर सकूँ, तो होती बड़ी  बात, 

पूरनमासी आ गई, बीत चुकी अँधेरी रात ।।