पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया
पांडेय की एक ग़ज़ल:
सच पे सियासत पे रिश्ता
अब तो सच बोलने से भी डरता है मन
क्या पता किस जगह कत्ल हो जाएगा।।
हर कदम छुप कर बैठे है लुटेरे यहां
जाने किस भेष में वो आके लूटे हमे।।
अब भरोसा भी हमको ना किसी पे रहा
क्योंकि ना कोई भी अब इसके काबिल बचा।।
होती इज्ज़त बड़ी खूब उनकी यहां
झूठ पे झूठ जो सदा बोलता है यहां।।
अगर देखो तो पहने घूमेंगे शरीफत का वो चोला यहां
और जा के अंदर से देखो तो वो रावण नजर आते है।।
अपनेपन का वो नाटक बहुत अच्छे से करते है
पर कभी भी वो अपनो का अपना माना ही नहीं।।
खेल रिश्तों मे शतरंज का वो खुब खेलते है
वक्त आने पे उनको भी मोहरा बना देते है।।
आज सच इतना ना जाने क्यों डर रहा
झूठ का फिर यहां खूब दबदबा हो रहा।।
आज अंदर ही अंदर हम दहल जा रहे
चाह कर भी ना हम कुछ भी कर पा रहे।।
आज रिश्तों पर देखो भारी सियासत हुआ
अपने घर में ही दल बदल की अब सरकार है।।
अब तो सच बोलने से भी डरता है मन
क्या पता किस जगह कत्ल हो जाएगा।।
हर कदम छुप कर बैठे है लुटेरे यहां
जाने किस भेष में वो आके लूटे हमे।।
अब भरोसा भी हमको ना किसी पे रहा
क्योंकि ना कोई भी अब इसके काबिल बचा।।
होती इज्ज़त बड़ी खूब उनकी यहां
झूठ पे झूठ जो सदा बोलता है यहां।।
अगर देखो तो पहने घूमेंगे शरीफत का वो चोला यहां
और जा के अंदर से देखो तो वो रावण नजर आते है।।
अपनेपन का वो नाटक बहुत अच्छे से करते है
पर कभी भी वो अपनो का अपना माना ही नहीं।।
खेल रिश्तों मे शतरंज का वो खुब खेलते है
वक्त आने पे उनको भी मोहरा बना देते है।।
आज सच इतना ना जाने क्यों डर रहा
झूठ का फिर यहां खूब दबदबा हो रहा।।
आज अंदर ही अंदर हम दहल जा रहे
चाह कर भी ना हम कुछ भी कर पा रहे।।
आज रिश्तों पर देखो भारी सियासत हुआ
अपने घर में ही दल बदल की अब सरकार है।।