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लघुकथा: सुनहरा पंख (मोना सिंह “मोनालिशा”, अहमदाबाद, गुजरात)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मोना सिंह मोनालिशा की एक लघुकथा  जिसका शीर्षक है “मैं सूरज की साथी हूँ”:

लालबत्ती वाली गाड़ी अपने सायरन की गुंज के साथ मेन गेट पर खड़ी है। वॉचमैन दरवाजा खोलता है फिर बड़े से सरकारी बंगले में गाड़ी अंदर आती है। सायरन की आवाज तेज सुनाई पड़ने लगती है। सोना पुरा नाम सोनल सिंह जिसका आईपीएस अधिकारी के रूप में प्रथम दिवस था । ये तो सब जानते हैं कि भारत की सबसे बड़ी नौकरी है आईएएस और आईपीएस। आईएएस,आईपीएस का जो रुतबा होता है, उसकी तुलना किसी भी नौकरी से नहीं की जा सकती है। सोना ने मुट्ठी में कर लिया था सपने को। वाह चेहरे पर आत्मविश्वास लबालब... शब्द नहीं है उस आत्मविश्वास से भरे हुए चेहरे की तारीफ करने के लिए। कुल मिलाकर कर कहें तो सोना वाकई दमक रही थी।
 
जल्दी जल्दी अपने आईपीएस के यूनिफॉर्म को पहन कर एक विजेता वाली मुस्कान के साथ आईने में थोड़ी देर के लिए खुद को निहार ही रही थी , तभी रसोईया ने दरवाजा खटखटाया। बता दें कि रसोईया, माली, ड्राइवर सब सरकार ने मुहैया कराये थे। आईपीएस को मिलने वाला वेतन भी किसी भी सरकारी नौकरी में मिलने वाले वेतन से सबसे ज्यादा होता है।सुसज्जित आवास  क्या बात है और वाहन पींपीं सायरन वाली जीप, मोबाइल की सुविधा सब  एक आईपीएस को अलग से मिलती है। कुल मिलाकर सोना ने उस नौकरी को हासिल कर लिया था जो सिविल सेवाओं में सबसे शक्तिशाली नौकरी में से एक है।सर्वश्रेष्ठ वेतन पैकेज कितना राहत और सुकून दिख रहा था सोना के चेहरे पर।
 
तो कह रही थी रसोईये ने दरवाजा खटखटाया.. अभी सोना जो  इन सब बातों की अभी आदि नहीं थी , हड़बड़ाकर दरवाजे पर आ गई। और प्यार से बोला काका मै आ ही रही थी। आपको आने की क्या जरूरत थी। हाँ तो सोना का रसोईये को 'काका' कहना महज हडबडाहट में निकले शब्द नहीं थे। उसने प्रण किया था , जब वह अॉफिसर बन जायेगी तो सबसे बड़े प्यार से बात करेगी चाहे कोई भी किसी भी काम को करता हो। मम्मी ने कहा था "महान् लोग हमेशा जमीन पर पैर रहते हैं और सबको सम्मान भी देते हैं।" तो सोना ने अपना काम किया साथ ही मम्मी की बातों का मान रखा जो उसके लिए बहुत जरूरी है। मैं तो कहूँ हर बच्चे के लिए कुछ अच्छी बातें ध्यान रखने योग्य होती है। रखना चाहिए दिमाग में ।
 
सोना जल्दी से अपने कामों को निबटा कर कुछ खाया और अब वह पुरी तरह तैयार थी। साफ इस्त्री की हुई युनिफॉर्म, चमकते हुए जूते। अहा ! जब वह अपनी बेल्ट में लगे गन को देखा तो मानो उसने गर्व का शिखर पार कर लिया। दादी की बात याद आ गई...लड़कियों को गुड़ियों से खेलना चाहिए ना की बंदूक और कार से। हम्म.. काश आज दादी होती असली गन देखने के लिए। चलो कोई नहीं मन ही मन दादी को याद किया। तभी सायरन की आवाज बहुत तेज़ हो गई और  लगा मानो दरवाजे से कोई आवाज लगा रहा हो।
सोना मन ही मन बड़बड़ाते हुए बोली.. पता नहीं ये गाड़ी में अलार्म सी सायरन क्यों लगवा रखी है। उफ्फ्फ  मुझे नफरत हो गई है इस आवाज से। बड़बड़ाते हुए कुछ कहने वाली थी की एक जोर की आवाज कानों में पड़ी।
महारानी उठ भी जाइए। आपके दोस्त कब से बाहर घंटी बजा रहे हैं। कोई टाइम टेबल ही नहीं है।
सोना तो अवाक् अपने कमर के पास टटोल के देखा पर गन तो था ही नहीं।
उसने आँख खोला तो सामने मम्मी हाथ में एक कप चाय लिए  चेहरे पर वही रोज वाली गुस्सा, प्यार, झल्लाहट  लिए खडी थी। बगल में  अलार्म घड़ी... ओह सायरन बजा रहा था।
सपना था... मुँह से निकला।
मुँह बनाते हुए एक साँस में ही सब कुछ मम्मी को बता दिया। मम्मी के मुख परअब भी मिश्रित भाव ही थे। मानों वो भी थोड़ी देर के लिए यथार्थ से खुद को विच्छेदित कर सपनों में चली गई हों।
मम्मी ने कहा सपना था पर बहुत अच्छा था । बस यही कहूँगी की समय है तुम्हारे हाथ में। कोशिश करो और सपने को बदलो यथार्थ में। नहीं तो ये सपना बाद में रूलायेगी। मेहनत का सुनहरा पंख लगाकर तय कर ले अपनी मंजिल...सोना से कर लो सपनों वाली गन को अपने मुट्ठी में..और बन जा आईपीएस सोनल सिंह....
 
सोना धीरे से बोली,  "सुनहरा पंख। "
 
फिर सोना ने तय किया कि वह उड़ेगी और  अपने घड़ी के अलार्म की आवाज को अपनी लालबत्ती वाली गाड़ी के सायरन में जरूर बदलेगी।
 
सपने भी मार्गदर्शक बन जाते हैं अगर दिल से अपनाया जाए। कई सोना सपने देखते रह जाते हैं और कई सपने को अपनी पहचान बना जाते हैं।