पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार मोना सिंह “मोनालिशा” की एक लघुकथा जिसका
शीर्षक है “मैं सूरज की साथी हूँ”:
लालबत्ती वाली गाड़ी अपने सायरन की गुंज के साथ मेन गेट पर खड़ी है। वॉचमैन दरवाजा खोलता है फिर बड़े से सरकारी बंगले में गाड़ी अंदर आती है। सायरन की आवाज तेज सुनाई पड़ने लगती है। सोना पुरा नाम सोनल सिंह जिसका आईपीएस अधिकारी के रूप में प्रथम दिवस था । ये तो सब जानते हैं कि भारत की सबसे बड़ी नौकरी है आईएएस और आईपीएस। आईएएस,आईपीएस का जो रुतबा होता है, उसकी तुलना किसी भी नौकरी से नहीं की जा सकती है। सोना ने मुट्ठी में कर लिया था सपने को। वाह चेहरे पर आत्मविश्वास लबालब... शब्द नहीं है उस आत्मविश्वास से भरे हुए चेहरे की तारीफ करने के लिए। कुल मिलाकर कर कहें तो सोना वाकई दमक रही थी।
सोना मन ही मन बड़बड़ाते हुए बोली.. पता नहीं ये गाड़ी में अलार्म सी सायरन क्यों लगवा रखी है। उफ्फ्फ मुझे नफरत हो गई है इस आवाज से। बड़बड़ाते हुए कुछ कहने वाली थी की एक जोर की आवाज कानों में पड़ी।
महारानी उठ भी जाइए। आपके दोस्त कब से बाहर घंटी बजा रहे हैं। कोई टाइम टेबल ही नहीं है।
सोना तो अवाक् अपने कमर के पास टटोल के देखा पर गन तो था ही नहीं।
उसने आँख खोला तो सामने मम्मी हाथ में एक कप चाय लिए चेहरे पर वही रोज वाली गुस्सा, प्यार, झल्लाहट लिए खडी थी। बगल में अलार्म घड़ी... ओह सायरन बजा रहा था।
सपना था... मुँह से निकला।
मुँह बनाते हुए एक साँस में ही सब कुछ मम्मी को बता दिया। मम्मी के मुख परअब भी मिश्रित भाव ही थे। मानों वो भी थोड़ी देर के लिए यथार्थ से खुद को विच्छेदित कर सपनों में चली गई हों।
मम्मी ने कहा सपना था पर बहुत अच्छा था । बस यही कहूँगी की समय है तुम्हारे हाथ में। कोशिश करो और सपने को बदलो यथार्थ में। नहीं तो ये सपना बाद में रूलायेगी। मेहनत का सुनहरा पंख लगाकर तय कर ले अपनी मंजिल...सोना से कर लो सपनों वाली गन को अपने मुट्ठी में..और बन जा आईपीएस सोनल सिंह....