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कविता: आदिवासी कौन (अर्तिमा चिक बड़ाईक, हल्दीबाड़ी, बिन्नागुड़ी, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार अर्तिमा चिक बड़ाईक की एक कविता  जिसका शीर्षक है “आदिवासी कौन”:
 
कोल हूँ, भील हूँ, मुण्डा हूँ, मैं संथाल हूँ,
शबरी भी हूँ, मैं बिरसा भी हूँ,
मैं मूल निवासी आदिवासी हूँ |
 
न हिन्दू हूँ, न मुस्लिम हूँ,
न सिख हूँ, न ईसाई हूँ,
मैं मूल निवासी आदिवासी हूँ |
 
वन उपवन में रहता हूँ,
कंद - मूल मैं खाता हूँ,
किन्तु मुझे असभ्य न कहना
मैं जंगल की धरोहर मूल निवासी आदिवासी हूँ |
 
प्रकृति की पुजारी हूँ,
प्रकृति में जीता हूँ,
करम की पूजा करता हूँ,
जितिया की पूजा करता हूँ,
प्रकृति की पूजा करने वाला
मैं मूल निवासी आदिवासी हूँ |
 
श्रम के मुताबिक देखोगे,
तो फर्क ही नहीं पाओगे,
औरतों और मर्दों में बराबरी ही पाओगे |
हाँ, मैं मूल निवासी आदिवासी हूँ |
 
शोध कार्यों में तो मैं शामिल हूँ,
छी:, थू, के घृणा भाव से क्या वंचित हूँ,
पांचवी अनुसूची में भी मैं शामिल हूँ ,
लेकिन क्या सच में अधिकारों में समान हूँ,
हाँ, मैं वही मूल निवासी आदिवासी हूँ |