पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार माधुरी पाण्डेय की एक कविता जिसका
शीर्षक है “वो गलियारे”:
आज भी याद आती है
गाँव की वो गलियारे ,
जो शहरों की इन
चमक धमक से थे परे ।
जहाँ इक मनभावन .....
हवाओ से जुड़ा था मन
जिसकी पगडंडी की
धूल में इक प्यारी सी
खुसबू से रोज
मिलना होता था ।
जहाँ बारिश की बूंदों से
मिट्टी में सौंधी सौंधी
महक से एक - एक रास्ते
महक जाते थे ,
जहाँ खेतो में
लहरहाते
फसलों से चारों और
रंगीनिया छा जाती थी ,
सरसों के फूलों
से
हर और सुनहरी किरण
फ़ैल जाती थी ,
जहाँ नीम की
निंबौरी
से हवाओं में शुद्धता
आ जाती थी ,
जहाँ दादा - दादी
की
कहानियों की बीच बचपन बीता
मासूमियत और नासमझी ......
के बीच हर पल जीया
उन गलियारों के बीच जाते मन नहीं थकते ,
पर उन सबको छोड़
लौट
आना पड़ता है कर्मभूमि की ओर ।।
आज भी याद आती है
गाँव की वो गलियारे ,
चमक धमक से थे परे ।
जहाँ इक मनभावन .....
हवाओ से जुड़ा था मन
जिसकी पगडंडी की
धूल में इक प्यारी सी
खुसबू से रोज
मिलना होता था ।
जहाँ बारिश की बूंदों से
मिट्टी में सौंधी सौंधी
महक से एक - एक रास्ते
महक जाते थे ,
फसलों से चारों और
रंगीनिया छा जाती थी ,
हर और सुनहरी किरण
फ़ैल जाती थी ,
से हवाओं में शुद्धता
आ जाती थी ,
कहानियों की बीच बचपन बीता
मासूमियत और नासमझी ......
के बीच हर पल जीया
उन गलियारों के बीच जाते मन नहीं थकते ,
आना पड़ता है कर्मभूमि की ओर ।।