पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रीति प्रिया की एक कविता जिसका
शीर्षक है “साहसी थी वो नारी”:
सुनो - सुनो सुनाती हूं
अनकही और अनछपी
एक मार्मिक कहानी
बहुत दूर रहती थी
प्रभु के अपने देश में
एक महिला बलिदानी
कहूं उन्हें दुर्गा का रूप या
थी वो अवतार काली की
ये कहानी घटी थी केरल
के त्रावणकोर में कहीं
तब थी सदी उन्नीसवीं
जब एक क्रूर प्रथा चली
जात-पात का भेद -भाव
उस समय चरम पे थी
तबके वहां के क्रूर राजा ने
एक कठोर प्रथा चलवाई
निचली जाति के लोगों
को देनी परती थी कर कई
कर लगा के उसने की चतुराई
ना उबर पाए निचली जाती
अपनी गरीबी से कभी भी
ना मांग पाए वो हक अपना
डूबे रहे कर्ज में लोग सभी
कर ना दे पाने के एवज में
महिलाओं की सम्मान छीन ली
उसने तब क्रूर कानून बनवाई
निचली जाति के औरतों को
स्तन ढंकने की हक नहीं थी
अपने को सभ्य समाज के
बताने वाले उस राजा ने
क्रूरता की सारे हद पार कर दी
ना गहने पहनने का हक था
ना तन ढकने की इज्जाजत
तब एक एझावा महिला ने
कदम उठाया क्रान्तिकारी
नाम था उनका नंगेली
कहा अपने स्तन को ढंकूगी
और ना कोई कभी कर दूंगी
जब खबर फैल गई ये आग सी
तब आएं राजा के अधिकारी
राजा के ट्टू ने मांगे उससे कर
उस मर्दानी ने उठाया ऐसा कदम
काट कर अपने स्तन को
केले के पत्ते पर रख किया पेश
सरपट भाग खड़ी हुई वहां से
आधिकारिक की मंडली
दिया उस महान देवी ने
अपने प्राण न्यौछावर
खून की परवाह को देख
पति चिरुकंदन हुए बहुत दुखी
नंगेली की जलती चिता में
कूद कर अपनी भी जान दे दी
इस प्रकार देश में पहली बार
कोई पुरुष सती बना
खबर फैलते ही हुआ विद्रोह
खत्म करना पड़ा राजा को
सारे कर्जो का ये सिलसिला
खुद का बलिदान देकर
किया नंगेली ने नारी का उद्धार
पड़ा नाम उस भूमि का मुलाचीपराम्बु
जहां दिया था नंगेली ने बलिदान
पर कहीं खो कर रह गई
ये बलिदान की कहानी
दब गई इतिहास के पन्नों में
एक साहसी नारी बलिदानी।