पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल
फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत
है। आज
आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार वर्षा श्रीवास्तव की एक कविता जिसका
शीर्षक है “मुक्ता”:
तूलिका से खेलती उंगलियों से
उपजी आड़ी - तिरछी लकीरों
संग मुक्त होती
मुक्ता।
मुग्ध हो अपनी चित्रकारिता में
पंछी बनती
फरार होती
मुक्ता।
आयी थी मिलने मुझसे
कुछ बरस पूर्व,
खिलखिलाते उसके
अधरों पर
टिक जाती थी मेरी निगाह।
अल्हड़ नदी सरीखी
उसकी बातों में
रमती थी मेरी सुबह।
फिर एक अनहोनी हो गयी
वो ब्याह दी गयी।
तब से मिलती हूँ उससे
चित्रों के माध्यम से।
वो इन्हीं चित्रों में बनाती हैं,
कुछ पिंजर,
कुछ पंछी,
कुछ बिना पर वाले
भी,
नाम से उपजे अर्थ
से भिन्न
मुक्त नहीं हैं, मुक्ता।
तूलिका से खेलती उंगलियों से
उपजी आड़ी - तिरछी लकीरों
संग मुक्त होती
मुक्ता।
मुग्ध हो अपनी चित्रकारिता में
पंछी बनती
फरार होती
मुक्ता।
आयी थी मिलने मुझसे
कुछ बरस पूर्व,
टिक जाती थी मेरी निगाह।
अल्हड़ नदी सरीखी
उसकी बातों में
रमती थी मेरी सुबह।
फिर एक अनहोनी हो गयी
वो ब्याह दी गयी।
तब से मिलती हूँ उससे
चित्रों के माध्यम से।
वो इन्हीं चित्रों में बनाती हैं,
मुक्त नहीं हैं, मुक्ता।