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कविता: संघर्ष (डॉ● गुणबाला आमेटा, उदयपुर, राजस्थान)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
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आशा अमर यही नभ को छू लूं, संचित सारी खुशियां कर लूं।
धन,वैभव और मान प्रतिष्ठा,अपने कदमों में धर लूं।।
इसी संघर्ष में रत है यहां सभी,नित नए सपने भर आंखों में।
उम्मीदों के पंख लगाए,जोश उमंग भर बांहों में।।
पुनीत ध्येय व सही राह,जीवन सफल बनाते हैं।
सद् कर्मो की आहूति देकर, जीवन यज्ञ बनाते हैं।।
कांटों का जो ताज पहनते, वो ही बिरले पूजे जाते ।
संघर्षों की ज्वाला में, नित तपकर निखरे जाते ।।
धर्म के पथ से डिगे नहीं,बाधाओं से डरे नहीं।
मनुज वही महान जगत में,कर्मवीर बन रुके नहीं।।
मंजिल को पाने के लिए, साहसी बन कदम उठाना होगा।
मशालों को जलाने के लिए, खुद लौ बन जलना होगा।।
फूल अगर बनना है तो कांटों में भी खिलना होगा ।
सच की राह पर चलना है तो संघर्षों में तपना होगा।।
कहीं संघर्ष है रोजी का,कहीं भूख, गरीबी का।
कहीं घुटते भावों का,अंतर्मन अवसादों का।।
हार जीत संघर्ष की परिणति,अपना लो जीवन की यह गति।
प्रथम श्वास से अंत श्वास तक, गिरती, उठती और संभलती।।