पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार नरेश चन्द्र उनियाल का एक गीत जिसका शीर्षक है “अन्नदाता कृषक”:
सींचता है
खेत को वह,नित ही अपने स्वेद से,
तब कहीं जाकर के
लाता है, फसल वह खेत से,
ऐसे मेहनतकश
कृषक का मान होना चाहिए,
अन्नदाता का
धरा पर, मान
होना चाहिए।
भोर में फटते ही
पौ, पाओगे उसको खेत
में,
है हुनर, उत्पन्न कर देता
है सोना रेत
में,
यह बिलक्षण
कारीगर, सम्मान
होना चाहिए,
अन्नदाता का
धरा पर मान
होना चाहिए।
हो रहा क्या है
जहां में, उसको कुछ मतलब नहीं,
श्रेष्ठश्रम हरपल
करे वह, कोई अब और तब नहीं,
कर्मयोगी ऐसे
का, गुणगान होना चाहिए,
अन्नदाता का
धरा पर, मान
होना चाहिए।
पौष की हो शीत
ठिठुरन, जेठ की या ताप हो,
सावन बरसती
मेह हो, या कोई भी संताप हो,
उसकी तो बस एक
धुन है, काम होना चाहिए,
अन्नदाता का
धरा पर, मान
होना चाहिए।
हलधर है वह, हलवाह है, सृष्टि का पालनहार है,
यह क्षुधा गर
तारिणी है, कृषक तारणहार
है,
'नरेश' लिख तू गीत उस पर, गान होना चाहिए
अन्नदाता का
धरा पर, मान
होना चाहिए।