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कविता: दीपांजली (सुखदेव सिंह राठिया, बरकसपाली, रायगढ़, छत्तीसगढ़)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
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दीपों की रौशनी से,
मुनव्वर हुआ घर आँगन।
         दीप दमके हैं आज सितारों से,
         एक सा लगे हैं धरती - गगन।।
 
आर्यवर्त सदियों से संस्कारित है,
रीति संस्कृति की ये इला पावन।
         गाथा कहती नित पुराणों में,
         समस्त पर्वों का ये पर्व पावन।।
 
आमोद - प्रमोद के क्षणिक पलों में,
नवल पट से सँवरे जन - जन।
         आनंद का इज़हार जग से,
         करते पटाखों का गुँजन।।
 
जीवन के विभावरी पहर पर,
चिराग करता रहे जग रौशन।
        भद्रा, कमला, कुबेर पूजन से,
        ज्योतिर्मय हो सबका जीवन।।
 
धर्म - मज़हब को भुलाकर,
एकता में बंध जाएं सब जन।
         तम से फासले हो पल में,
         खुशियों से पुल्कित हो जीवन।।