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कविता: उसे जीने दो (आभा चौहान, अहमदाबाद, गुजरात)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार आभा चौहान की एक कविता  जिसका शीर्षक है “उसे जीने दो”: 

कब तक करोगे यह दरिंदगी,
क्यों छीन ली तुमने उसकी जिंदगी।
उस फूल को तुमने कैसे कुचल डाला,
क्यों उसके कपड़ों को चिथडो में बदल डाला।।
 
एक बार सुन तो लेते हो उसकी पुकार,
क्यों कर डाला यू बलात्कार
किसी के घर का चिराग थी वो,
सपनों के महलों में रहती थी जो।।
 
अपने बाबा की थी राजकुमारी,
मां को थी प्राणों से प्यारी।
अपनी बहन की वो सहेली थी,
ना समझो वह अकेली थी।
 
खता करने से पहले तुमने न सोची,
उसके बिना उसकी मां कैसे जी पाएगी।
क्या हाल होगा उसके बाबा का,
जब उनके कांधे पर उसकी अर्थी जाएगी।।
 
हैवानियत की हद कर दी तुमने,
क्या बिगाड़ा था तुम्हारा उसने ।
हीरो नहीं तुम हो खलनायक,
गुनाह नहीं है तुम्हारा माफ करने लायक।
जिस दिन तुम्हें तुम्हारे गुनाह की सजा मिलेगी,
हर लड़की के चेहरे पर मुस्कान खिलेगी।।

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