Welcome to the Official Web Portal of Lakshyavedh Group of Firms

कविता: चटाई - सी ये औरतें (अर्चना राय "खुराफ़ाती", मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार अर्चना राय "खुराफ़ाती" की एक कविता  जिसका शीर्षक है “चटाई - सी ये औरतें”:

 
चटाई - सी ये औरतें
बिछ जाती हैं अपनी खुशियों
की तिलांजलि देकर
तो कभी मोड़ दी जाती हैं उनके
आत्मसम्मान को ताक पर रखकर
 
चटाई - सी ये औरतें
कभी हंसाई जाती हैं तो कभी रुलाई
कभी सताई जाती हैं तो कभी ये बताई
कि तुम्हारे अस्तित्व का सृजन हुआ है
दूसरों के काम आने के लिए
परमार्थ के लिए, कष्ट निवारण के लिए
 
सो चटाई - सी ये औरतें
कभी पायदान बनकर
सोख लेती हैं सारी गंदगी
और पैरों की धूल को
अपने सर से लगाकर
चटाई सी ये औरतें
कभी बन जाती हैं योगा मैट
और हर लेती हैं सबकी पीड़ा
कभी बन जाती हैं वैद्य भी
विविध रोगों के उपचार हेतु
 
कभी समेट लेती हैं सबकी
आकांक्षाओं, सबकी परेशानी को
अपनी बाहों को फैलाकर
और कराती हैं एक सुकून
एक अपनेपन का एहसास
 
चटाई सी उन औरतों को
लोग मरदते हुए निकल जाते हैं
उसके जीवन में भगदड़ मचाकर
मगर वो उफ़ तक नहीं करती
बस,
घर के किसी कोने में
मोड़कर पड़ी वो चटाई
टुकुर - टुकुर कर देखती रहती है
अपने दिशाहीन संसार को
 
क्योंकि
चटाई सी उन औरतों के पास
और कुछ होता ही नहीं
सिवाय उसके फोल्डेबल आत्मा के
जो परिस्थिति अनुसार
ढलती जाती है
उसके जन्म से लेकर
उम्र के आखिरी पड़ाव तक ।

Post a Comment

0 Comments