पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार नितिन त्रिगुणायत 'वरी' की एक कविता जिसका शीर्षक है “सरिता”:
पावन निर्मल
कितना सुंदर,
देखो
बहता सरिता का जल।
लगती इसकी धारा प्यारी,
कल - कल बहती अद्भुत अविरल।
हिम खंडों से
होकर आती,
वन वीहड़ में करती विप्लव।
सरिता के जल में प्रात : काल,
देखो पक्षी करते
कलरव।
देता है
शिक्षा हमको जल,
जो प्रतिपल प्रतिक्षण बहता है।
अनवरत रहो चलते
प्यारे,
यह हम
सब ही से कहता है।
जीना है यदि
निर्मल जीवन,
तुमको प्रतिपल चलना होगा।
आएँगी लाख मुसीबत
पर,
सबसे
तुमको लड़ना होगा।
पानी जब स्थिर
रहता है,
तब वह
कीचड़ कहलाता है।
रुकते का मान
नहीं जग में,
कीचड़ हम को समझाता है।
बनना है यदि जीवन
में कुछ,
तो सत्य राह पर चलना है।
करते हो काम गलत
प्यारे,
तो दंड
तुम्हें ही भरना है।


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