पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ● विशाल सिंह 'वात्सल्य' की एक कविता जिसका
शीर्षक है “फूल के फूल”:
अपने फूल की राख में से कैसे फूल चुने होंगे
सोचता हूँ कैसे बाबुल के आंसू रूके होंगे।
पाई पाई जोड़ के बाबुल ने उसे पढाया होगा
सोचता हूँ कैसे जालिम ने उसे मिटाया होगा।
क्या उस जालिम की रूह नहीं कांपी होगी
जब वो रो रो कर अपनी गुहार लगा रही होगी।
क्या ये आकाश, ये धरती नहीं फटे होंगे
क्या द्रौपदी के कृष्ण विचलित नहीं हुए होंगे।
दुशासन का सीना चीरने को कोई भीम क्यों नहीं है
हर गली में रावण है, कोई राम क्यों नही है।
है द्रौपदी, अब कोई कृष्ण नहीं आयेंगे
है सीते, अब कोई राम लंका नहीं जायेंगे।
तुम्हें स्वयं अब काली बनना होगा
महिषासुर का मर्दन करना होगा ।
चारों और तुम्हारा जय घोष होगा
तुम्हें स्वयं लक्ष्मी बाई बनना होगा।
अपने फूल की राख में से कैसे फूल चुने होंगे
सोचता हूँ कैसे बाबुल के आंसू रूके होंगे।
पाई पाई जोड़ के बाबुल ने उसे पढाया होगा
सोचता हूँ कैसे जालिम ने उसे मिटाया होगा।
क्या उस जालिम की रूह नहीं कांपी होगी
जब वो रो रो कर अपनी गुहार लगा रही होगी।
क्या ये आकाश, ये धरती नहीं फटे होंगे
क्या द्रौपदी के कृष्ण विचलित नहीं हुए होंगे।
दुशासन का सीना चीरने को कोई भीम क्यों नहीं है
हर गली में रावण है, कोई राम क्यों नही है।
है द्रौपदी, अब कोई कृष्ण नहीं आयेंगे
है सीते, अब कोई राम लंका नहीं जायेंगे।
तुम्हें स्वयं अब काली बनना होगा
महिषासुर का मर्दन करना होगा ।
चारों और तुम्हारा जय घोष होगा
तुम्हें स्वयं लक्ष्मी बाई बनना होगा।