पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार शमा जैन सिंघल की एक कविता जिसका शीर्षक है “किन्नर”:
जो ना नर है ना
नारी,
समाज का तीसरा
वर्ग हूं मैं,
किन्नर, किन्नर ओर किन्नर !
इज्जत से जीने का
अधिकार है मुझको,
ना देखो घृणा भरी
नजरों से मुझको,
खुशियों में
तुम्हारी शामिल होती हूं,
पचास रूपये के
बदले,
अनमोल दुआएं दे
जाती हूं !
ईश्वर की बनाई एक
शख्सियत हूं,
सबसे अलग, सबसे जुदा एक शख्सियत हूं,
समाज से पैसे
मांग अपना पेट भरती,
कभी रेल में, कभी सड़कों पे ताली बजा,
अपना गुजारा करती
!
ऐसा नहीं है कि
वो मेरा घर है,
बल्कि इसलिए कि
मेरा कोई घर नहीं,
घिनौनी नजरों से
देखा किसी ने,
मांगा नहीं दुआओं
मुझे,
जरूरत नहीं किसी
को मेरी,
फिर भी खुशियों
में,
शामिल होती हूं !
ले बलाएं तेरी
नज़र उतारती,
शक्ल भले ही
सुन्दर ना हो मेरी,
दिल तो खुबसूरत
रखती हूं मैं !
"ताली बजा, बधाई देते, पाते फिर भी धिक्कार है,
उम्र लिंग का भेद
ना जाने,
करते नहीं कोई
घिनौना काम है” !