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कविता: अपनों से ना तुम खेलों (प्रिया पांडेय, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया पांडेय की एक कविता  जिसका शीर्षक है “अपनों से ना तुम खेलों”: 
 
मंदिर - मस्जिद हर कण - कण में और गिरिजाघर और गुरूद्वारे में।।
हर जगह समाए तुम ही हे ईश्वर फिर क्यों फसें इंसानों के बटवारे में।।
कोई मंदिर जा के पाठ करे  और कोई मस्जिद में करे अजान।।
कोई गिरजाघर में ध्यान करे और गुरूद्वारे में गूंजे इक ओंकार।।
हर मानव के रग में जो लहू बहे वो होता है रंग सभी का लाल।।
फिर भी भेद भाव फैला कर ना जाने क्यों करते है बवाल।।
हर रिश्ते अपने है तेरे इन्हे मजहब से ना तौलो
यही काम आयेंगे तेरे इनसे ना  सियासत खेलो।।
आ पढ़ ले तू मेरी गीता और मै तेरा पढूं कुरान
जाति पातिं का भेद मिटा जय बोलो हिन्दुस्तान।।