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कविता: माँ भारती (वीणा गुप्त, नई दिल्ली)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार वीणा गुप्त की एक कविता  जिसका शीर्षक है “माँ भारती”:

माँ भारती !

तुझे नमन, तेरा वंदन, तेरी आरती।

 

प्रथम रश्मि से दीपित मस्तक,

ज्ञान - तेज दिव्याभ तिलक।

हरित नील पट, शोभित तन पर,

सुषमा रूचिर विराजती।

माँ भारती !

 

तेरा वत्सल, बन अमिय सलिल,

बहता तव धरती पर प्रतिपल।

निर्झर, सरिता, सागर - लहरें,

तेरे चरण पखारती।

माँ भारती !

 

वीर प्रसू तू धन्य धरा है।

जीवन तेरा शांति भरा है।

कर्मयोग की पावन गीता,

कान्हा वेणु उचारती।

माँ भारती !

 

आशा और विश्वास समन्वित,

विश्व वंदनीय, गरिमा मंडित।

प्रेम, अहिंसा, ऐक्य मंत्र ले,

विश्व - भविष्य संवारती।

माँ भारती !

 

तेरा वंदन, तुझे नमन, तेरी आरती।

मां भारती !