पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रीति श्रीवास्तव की एक कविता जिसका शीर्षक है “कोरोना का भय”:
आज मेरी तबीयत, थोड़ी नासाज़ थी
गले में भी हल्की - हल्की सी खराश थी
नाक में
सुरसुराहट थी, बदन में गरमाहट थी
ये लक्षण देख, मैं सहम गया,
लगा मुझे कहीं, कोरोना तो न हो गया?
ये सोच कर मुझे, घबराहट सी होने लगी,
धड़कने तेज हुयीं, सांसें थमने लगीं
बचपन से आज तक का
हर लम्हा याद आ गया
न जाने कब, आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया
हे प्रभु ! ऐसा अनर्थ न कर,
मुझे मेरे अपनों
से, ऐसे न दूर कर
जीवन के अभी कई
सपने अधूरे हैं,
अपने और अपनों के
लिए करने उन्हें पूरे हैं
घबराहट से मैं, पसीने से तर - बतर था,
स्वप्न टूटा तो
देखा, मैं बिस्तर पर था
शुक्र है ईश्वर
का, कि ये हक़ीक़त नहीं स्वप्न था,
'कोरोना का भय', कितना भयावह था
ये स्वप्न आज
मुझको, इतना दहला गया,
कोरोना पीड़ितों
का दर्द बतला गया
हे ईश्वर ! इस कोरोना को, अतिशीघ्र दूर कर,
लोगों को जीवन दे
और दामन खुशियों से भर