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कविता: श्रृंगार रस (विक्की चंदेल “चंदेल साहिब”, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार विक्की चंदेल चंदेल साहिब की एक कविता  जिसका शीर्षक है “श्रृंगार रस”: 

पीताम्बर मोर मुकुट धारण कर.
चाँदनी रात में मोहन वृंदावन आओ.,
फ़िर ख़्वाब अग़र हो जाओ तो ग़म क्या.,,
 
साँवरी सूरत तिरछी नज़र नैन कज़रारे.
कान्हा राधे गोपियों से आँख मिलाओ.,
फ़िर नज़र अग़र चुरा लो तो ग़म क्या.,,
 
सुंदर कोमल नूपुर पग धर कर.
गोकुल में माखन चुराने आ जाओ.,
फ़िर मटकी अग़र टूट जाए तो ग़म क्या.,,
 
मीठी सी मुस्कान औऱ मुरली की तान.
साँवरे यमुना के मनोरम तट पर बजाओ.,
फ़िर विरह की पीड़ा सताए तो ग़म क्या.,,
 
पुनर्मिलन पुलकित तन एवं हर्षित मन.
बरसाने में माधव राधे संग रास रचाओ.,
फ़िर धैर्य की कठिन परीक्षा हो तो ग़म क्या.
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