पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार संगीता मुरसेनिया की एक कविता जिसका
शीर्षक है “रंगमंच”:
सकल विश्व रंगमंच है ।
हम सब मनुष्य मात्र ।
अपना - अपना पाठ निभाते ।
इस रंगमंच पर ।1।
विधाता की रचना से ।
सब उसी निर्धारित पाठों का नित - नित,
रंगमंच की सज्जा होती सुंदर ।
अभिनय से, रंगमंच का नेता,
पाठ निभाते हैं, निर्धारित
पाठानुसार, रंगमंच पर ।
काव्य पाठ माध्यम होता है ।
मन से मंच तक ।
भावाभिव्यक्ति पहुंचाता है ।
नित्य नूतन कवि कवयित्री ।4।
हर मानव स्त्री हो या पुरुष ।
नित - नित, नूतन - नूतन ।
अभिनय करने,
अधीन, पराधीन, विवश,
अभिनय करने को ।5।