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कविता: हां मै किसान हुं (प्रिया पांडेय, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया पांडेय की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हां मै किसान हुं”: 
तपती हुई दोपहरी का मै गिरता हुआ पसीना हूं
ठंडी की सर्द रात की वो ठिठुरन भी हूं मै प्यारे
हर मौसम में करू काम कभी आराम ना पाऊं
बिन खाए पिए रात दिन बस खेतो में ही गुजारूं
मै रात दिन मेहनत करू फिर भी कुछ ना बचा पाऊ
सोने के जैसे अन्न का मै कुछ कीमत भी ना पाऊं
अरे अब तो पहचानो हमको मै वो मजदूर हूं प्यारे
जो रात दिन मेहनत करके अन्न का भंडार सजाऊं
अरे मै तो कर्ज में डूबा हुआ एक इंसान हूं प्यारे
क्या जानोगे तुम की मै कितना परेशान हूं प्यारे
मै सीधा साधा इंसान हूं हमें राजनीति में ना बाटों
अपने फायदे के लिए हमे तुम पार्टियों में ऐसे ना लपेटों
मै वोट देने के लिए कभी भगवान भी हूं बनता
और सबको अन्न देने के लिए मै शक्तिमान हूं प्यारे
मै इस देश का सम्मान और अभिमान हूं प्यारे
और फंदो से लटकता शव का पूरा शमशान हूं प्यारे
मै हिन्द हिन्दुस्तान और भारत  इंडिया भी हूं प्यारे
तुम भूल गए हमको ना कि मै एक किसान हूं प्यारे