पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार वर्तिका अग्रवाल की एक कविता जिसका
शीर्षक है “वक्त”:
वक्त क्या हो तुम ?
हथेलियों से
फिसलते
कुछ उस रेत की तरह
जिसे जितना समेटना चाहूँ ..
निकल ही जाते हो ..
या फिर उस जल की तरह
जिसका प्रारंभ और अंत
दोनों अनंत है।
वक्त क्या हो तुम ?
क्या तुम इस
पृथ्वी की ही तरह
से गोल हो ?
जहाँ से जीव का
जन्म लेना
निर्धारित है, वही जाकर
विलीन होना भी निश्चित है।
या फिर सेकंड, मिनट,
घंटा, मास, वर्ष में
विभाजित किया हुआ
कर्मो को मापने का इक यंत्र।
वक्त क्या हो तुम ?
कुछ उस रेत की तरह
जिसे जितना समेटना चाहूँ ..
निकल ही जाते हो ..
या फिर उस जल की तरह
जिसका प्रारंभ और अंत
दोनों अनंत है।
वक्त क्या हो तुम ?
से गोल हो ?
निर्धारित है, वही जाकर
विलीन होना भी निश्चित है।
या फिर सेकंड, मिनट,
विभाजित किया हुआ
कर्मो को मापने का इक यंत्र।