पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार ऋतु गुप्ता की एक कविता जिसका शीर्षक है “मेरी कलम”:
जब से कलम से
मेरी प्रीति लागी,
हुई भोर सुहानी ,नई ज्योति जागी।
कलम को छूते ही,मैं हूं मुस्कुराई,
लगा जैसे दुनिया
अभी नई पाई।
लगता है जैसे, सुकून वो मिला है,
भूली बिसरी यादों
का गुलिस्तां खिला है।
सारे रंग दुनिया
के सभी को मिले ना,
जो भी मिले है,उसी में खुश रहना।
उम्र चाहे जितनी
अभी हमने गवांई,
कर्म करो अब भी,तो होगी भरपाई।
चाहे चहुंओर घने
हो अधंरे
कुछ अंश तो हमने
धूप का भी पाये
उसी धूप के
टुकड़े को बना कर स्तम्भ अब,
करना है तिमिर
दूर सारे जहां का।
खुद की खुदी
से स्पर्धा थी कबसे,
नहीं भीड़ मे हम, भीड़ बनी हमसे।
यदि हो सके तो
कोई शौक रखिए,
उम्र चाहे जो हो
सदैव आगे बढिए।