पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार संध्या चौधुरी “उर्वशी” की एक कविता जिसका
शीर्षक है “खामोशी”:
जब दिल पर छा जाती है खामोशी चेहरे पर भी छा जाती है खामोशी
शब्द छूट जाते हैं संग साथ
जज्बात भी हो जाते हैं बेजार
कभी कहीं दिल पर जब लग जाती है चोट
दर्द बनकर छा जाती है खामोशी
पूरी दुनिया दिखती है दुश्मन
बोलती हुई आंखें भी हो जाती है खामोश
कोई अपना बनकर जब दे जाए धोखा
उपहार में मिलते हैं टूटते अरमान मिलती हैं खामोशी
जीवन में अगर दुखों का हो भंडार दुखदाई जिंदगी मे भी जाए खामोश
उर्वशी मन का मीत जब जाए छूट सच्चा मित्र बनकर आ जाती है खामोशी
खामोशी का होता है एक वजूद
हर किसी के पास नहीं होती खामोशी
अपना ले तू भी इस खामोशी को
जो अपने होकर भी न पढ़ सके इस खामोशी को
बोलने से अच्छा है अपना ले इस खामोशी को ।।