पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार मंगला श्रीवास्तव की एक कविता जिसका
शीर्षक है “बेड़ियों में जकड़ी हूँ मैं”:
आज भी मैं बन्द हूँ
अपनो के बीच कही
जकड़ी हूँ बेड़ियों में
कहने को आजाद हूँ
पर बन्द पंछी हूँ मैं
पिंजरे में कैद।
खुद को कछुए की तरह
एक खोल में
उस खोल से उस
पिंजरे से आजाद होना
चहाती हूँ मैं भी
चहाती हूँ मै भी
खुले आकाश में
बादलों के बीच
बुलंदियों को
आसमान पर जाकर
कहि दूर क्षितिज में
कर भागना चहाती
हूँ मैं आगे बहुत ही आगे
आजाद होना चहाती हूँ
में बन्धनों की बेड़ियों से।