पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार कंचन ज्वाला “कुंदन” की एक कविता जिसका
शीर्षक है “जरा - सा टूटा जरूर हूं पर हारा नहीं हूं”:
यूँ तरस से न देख
मुझे बेचारा नहीं हूं
तंज न मार किस्मत का मारा नहीं हूं
हार को बदल दूंगा
जीत में ये जिद है
जरा - सा टूटा जरूर हूं पर हारा नहीं हूं
मुगालता न पाल कि
निगल लेगा मुझे
तेरा निवाला नहीं हूं तेरा चारा नहीं हूं
मैं मीठा नहीं ये
तेरे जीभ का खोट है
मुझे पक्के से पता है मैं खारा नहीं हूं
तंज न मार किस्मत का मारा नहीं हूं
जरा - सा टूटा जरूर हूं पर हारा नहीं हूं
तेरा निवाला नहीं हूं तेरा चारा नहीं हूं
मुझे पक्के से पता है मैं खारा नहीं हूं