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कविता: सुनो ओ धृतराष्ट्र (शिवचरण चौहान, कानपुर, उत्तर प्रदेश)

 
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार शिवचरण चौहान की एक कविता  जिसका शीर्षक है “सुनो ओ धृतराष्ट्र”: 

कह ना पाए
भीष्म खुल कर
कह ना पाए द्रोण।
अरे वो धृतराष्ट्र अंधे
मोह सुत का छोड़ ।।
जानता तू
कर रहा जो
वह नहीं है धर्म।
ओ अधर्मी
छोड़ दे तू
ये घृणित धत कर्म।
जा रहा जिस
रास्ते तू
रास्ता वह मोड।
मोह सुत का छोड़।।
जान ले तू
ताज का है
सिर्फ संवाहक।
नहीं सिंहासन
तुम्हारा
भ्रम तुम्हें नाहक।
मान ले कहना
विदुर का
हाथ ले अब जोड़।।
मोह सुत का छोड़।।
छोड़ दे लिप्सा
सत्य के
और आ जा पास।
वरना
यह इतिहास
तेरा करेगा उपहास।
सूर्य का रथ
है अटल
तूं न उल्टा मोड़।।
सोच ले धृतराष्ट्र जल्दी
मोह बंधन तोड़।।
मोह सुत का छोड़।।