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ग़ज़ल (प्रमिला श्री 'तिवारी', धनबाद, झारखंड)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रमिला श्री 'तिवारी' की एक  ग़ज़ल:

 जाने  कितना वो सोते हैं ।

वक्त गँवाकर फिर रोते हैं

 

उनको बस नुकसान हुआ है -

अपना आपा जो खोते हैं ।

 

ऐसे भी कुछ लोग हुए हैं -

दिल में बस नफरत बोते हैं ।

 

उनसे पूछो दिल की हालत -

पाने से ज्यादा खोते हैं ।

 

पोछें आँसू कौन किसी के -

दामन सब भीगे होते हैं ।

 

राह गलत जो हरदम चलते -

अश़्कों से दामन धोते हैं