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कविता: हिंदी की महिमा (चंद्रकला भरतिया, नागपुर, महाराष्ट्र)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार चंद्रकला भरतिया की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हिंदी की महिमा”: 

ऋषियो की भाषा है हिन्दी
वाणी है भगवान  की
रचे वेद पुराण उपनिषद
दिया  कृष्ण ने गीता ग्यान
रामायण महाभारत की गाथा
हिंदी ने पहुंचाई हम तक
हिंदी मे सरस माधुर्य भाव समाए
संवेदनाओ से भरी हुई है
ग्यान विग्यान  दर्शन  का
अद्भुत  समावेश इसमे हुआ है
हम हिन्दू है, हिन्दी से ही
हिन्दुस्तान  हमारा।।
 
हिंदी है बिन्दी भारत मा के भाल की ।
चमचम चमके, दमदम दमके, मान से अभिमान से ।
चमक कभी फीकी ना हो सकती है
इसके आन बान की
हिन्दी है जन - जन का मन प्राण
बढाती हरदम देश का मान ।।
70% देशवासी के मन की भाषा, सरल, सहज, सुगम
दिल से बोली जाती है ।
मिला प्रांतीय भाषा का मान
पर मान अधूरा - सा लगता है
जैसे एक राष्ट्र, एक ध्वज,
एक चिन्ह, एक करेंसी वैसे ही
भाषा एक हो 'हिंदी 'हमारी ।।
 
'मोदी है तो मुमकिन है'
गजब का  विश्वास भरा नारे मे
हटाया 370 और 35 को जैसे
साकार हुआ स्वप्न राममंदिर का
वैसे ही हिन्दी हो "राष्ट्रीय भाषा" हमारी ।
जन संदेश  यही मोदीजी ।
हम हिन्दू है, हिन्दी से ही हिन्दुस्तान हमारा ।।
 
प्राचीनतम और समृध्दशाली
संस्कृत की  बेटी है हिन्दी
हर दृष्टि से समृद्ध है यह
कहते गुणो की  खान इसे
स्वर, व्यंजन, उपमा, रूपकसे
श्रृंगारित व्याकरण है इसका
सरलतम, सरसता गहना इसका
वैज्ञानिक शब्दो  से सजी हुई है
सीमाओ के तोडकर बंधन
अखिल विश्व मे यह फैली है
बोली जाती अनेक देशो मे
विश्व वंदिता रूप है इसका
शपथ उठाई है हमने अब
भारत के उत्थान की ।
छेडेगे हम नयी रागिनी
इसके  गौरव गान की ।
कहती 'चंदा' हाथ जोड़कर
हिन्दी  हिन्दुस्तान की ।
विश्व  फलक पर चमकाएगे  हम
हिन्दी  को "राष्ट्रभाषा"
बनाएंगे  हम ।।