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कविता: क्षमा तुम पर है (डॉ• निशा पारीक, जयपुर, राजस्थान)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉनिशा पारीक की एक कविता  जिसका शीर्षक है “क्षमा तुम पर है”: 

स्मृति सुरभित समीर सयानी,

प्रिय की झलक दिखी पुरानी|

पास   मेरे  वो बैठे  स्नेह संग,

मूरत  वही  मधुर  मुसकानी||

 

छलकी  पलको  से  दो  बूँदे,

विरहाकुल नयनों को छू के|

ह्रदय भाव मग्न  था किन्तु,

नयन नीर की सरित में डूबे||

 

मिलना पल  पलक में रहना,

स्वप्न सुहाना स्वयं से सिहरा|

कब  आए कब चले गए हो,

यही  विरह श्वास का पहरा||

 

जीवन घन आनन्द तुम्हीं हो,

मेरे    टूटे   स्वप्न   तुम्हीं    हो|

जीवन  डोर  बँधी  है  तुमसे,

तुम्हीं प्राण आधार  तुम्हीं हो||

 

न्यौछावर  तन मन तुम पर है,

भूल   हुयी   क्षमा  तुम  पर है|

मैं  विरहन   विरहानल  दहती,

प्रणय   प्रिय शीतल समीर हैं||