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कविता: माँ की महिमा (कल्पना त्रिवेदी, शुक्लागंज, उन्नाव, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार कल्पना त्रिवेदी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “माँ की महिमा”:

 
माँ शब्द है कितना छोटा,
पर होता है कितना अनूठा,
बच्चा जब पहली बार बोल पाता है,
तो ये माँ शब्द ही उसकी जुबान पर आता है,
बच्चा जब चोट खाता है तो
ये छोटा सा माँ शब्द ही उसकी जुबान पर आता है।
 
देवता भी माँ की गोद के लिए तरसते है,
तभी तो मानव रूप ले धरती पर आ बसते है,
माँ मौत के मुख में जाकर भी,
अपने बच्चे को इस दुनियाँ में लाती है,
अपने बच्चे पर सारी दुनियाँ का प्यार लुटाती है।
 
बच्चो के हँसने पर हँसती है,
बच्चो के रोने पर रोती है,
माँ तो बच्चो की परछाई होती है,
जो बच्चो से कभी भी जुदा नही होती है।
 
माँ होती है कितनी अनूठी,
माँ के आँचल के आगे ये सारी दुनियाँ लगती है कितनी छोटी,
माँ होती है ममता की मूरत,
माँ के चेहरे में दिखती है भगवान की सूरत।

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