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कविता: आभार अर्धांगिनी (अंकुर सिंह, चंदवक, जौनपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार अंकुर सिंह की एक कविता  जिसका शीर्षक है “आभार अर्धांगिनी”: 


हम बस प्रिय -प्रिये नहीं,
हम कदम-कदम के साथी हैं।
हम बस दो जिस्म नहीं,
हम जन्मों-जन्म के साथी है।।
 
तुम ही हो मेरी सब खुशियां,
तुम्हारी बाहों में है मेरी दुनियां।
सिर रख गोद में तेरे मैं सोऊ,
संग तेरे दिखे खुशियों की बगियां।।
 
तेरे उलझे केशों को सुलझाऊ,
तेरे नयनों में खुद समा जाऊं।
जीवन में दो रोटी कमा लाऊ,
पहली मैं तुझे खिलाऊं,
दूसरी फिर मैं खुुद खाऊ।।
 
पैसों से है हम निर्धन प्रिये,
तिजोरी में रखते तस्वीर तेरी।
ऊंचे महलों के हम नहीं वासी,
तेरे नयन है, मेरे सुखद आवासीय।।
 
दिलों में है बस प्यार तुम्हारा,
तुम हो मेरे जीवन का सहारा।
इक चाहत है इस जीवन में,
पग-पग पर हो साथ तुम्हारा।।
 
ऑफिस से जब थका आता हूं,
देख तुम्हे मैं मुस्कराता हूं।।
तुम्हारे हाथों से बने चायों से,
खुद को मैं तरोताजा पाता हूं।।
 
बच्चा मेरा रातों में तंग करता,
मै अपनी निद्रा में मस्त रहता।।
खुद जगकर तुम उसे सुलाती,
सुबह फिर मधुर मुस्कान बिखेरती।।
 
हर पल तुम रहोगी मेरा सहारा,
सातों जन्मों तक होगा साथ हमारा।
हर एक परिस्थिति में तुम साथ रहना,
बुढ़ापे की तू बुढ़िया मेरी, मै बुड्डा तुम्हारा।।
 
 
छोड़कर अपना घर, साथ मेरे ब्याह तुम आई,
सुख-दुख दोनों में, साथ तुम मेरे बिताई।
कैसे करू मैं प्रिये अभार तुम्हारा ?
जो जीवन के हर रश्म तुमने निभाई।।
 
ना जाने कितने बसंतो का हूं ऋणी तुम्हारा,
इस जीवन को बस है अब तुम्हारा सहारा।।
छोड़ ना अर्ध-मार्ग में तुम हमको जाना,
तुम्हारे बाद कोई नहीं दूजा हमारा।