पश्चिम बंगाल
के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार सिमी अनुराग शर्मा की एक कविता जिसका
शीर्षक है “आखों का कसूर”:
दुनिया की रीत से परिचित होती गयी
परिचित से ही परिचित न हो सकी
आखों का कोई कसूर नहीं फिर भी
पता नहीं क्यों पानी की की धारा नहीं रुकती
समय की खुबसूरत पहलू पर
धब्बा ही धब्बा ही है
समय की दर पर समय की आश लीये बैठी
अनुभव ने सीख को सिखा दिया
वनिता की कोई खवहिश नहीं
कसूर था तो बस समय का
काश कोई चमत्कार होता है
दुनिया की रीत से परिचित होती गयी
परिचित से ही परिचित न हो सकी
आखों का कोई कसूर नहीं फिर भी
पता नहीं क्यों पानी की की धारा नहीं रुकती
समय की खुबसूरत पहलू पर
धब्बा ही धब्बा ही है
समय की दर पर समय की आश लीये बैठी
अनुभव ने सीख को सिखा दिया
वनिता की कोई खवहिश नहीं
कसूर था तो बस समय का
काश कोई चमत्कार होता है


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