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कविता: बेदर्दी बालम (रीमा सिंह,अयोध्या नगर, भोपाल, मध्य प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रीमा सिंह की एक कविता  जिसका शीर्षक है “बेदर्दी बालम”: 

अँखियों से झरझर  बहे मेरे नीर,
किसको दिखाऊँ अपनी  पीर ?
 
देखूँ मैं जब जब हरी हरी चुड़ियाँ,
याद आए मुझे, बीती वो घड़ियाँ।
 
माँग में मेरे तूने सिंदूर भरा था,
नाम मेरा तेरे साथ जुड़ा था।
 
रात रात भर मैं राह निहारूँ,
मन ही मन बस तुझे पुकारूँ।
 
भोर पहर जब हो तुम आते,
लव मेरे तुम्हें देख मुस्कुराते।
 
तुझसे मिलन की लगी आस है,
इसलिए चल रही मेरी सांस है।
 
सुंदर छवि तेरी मन को मोहे,
भीतर तेरे क्या ? कैसे मन टोहे।
 
सँग तेरे किसी और को पाऊँ,
जीते जी मैं मर मर जाऊँ।
 
साथ नहीं अब मेरे, तेरा मन,
बोझिल सा लगे, मुझे ये तन।
 
जो ना मैं थी, भायी तुमको,
ब्याह कर क्युँ लाये मुझको ?