पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार राजीव रंजन की एक कविता जिसका
शीर्षक है “लाठी”:
किसान का स्वाभिमान है लाठी,
अंधे की जान है
लाठी।
बेटा को बुढ़ापे
की लाठी कहा जाता है,
राह चलते कुत्तों
से लाठी हमें बचाता है।
बेबस गरीबों को
जो भी सताता है,
ईश्वर की लाठी से
नहीं बच पाता है।
पुराने जमाने में
जो लाठी घुमाते थे,
अपने इलाके में
लठैत कहे जाते थे।
मालूम ही होगा
लाठी चार्ज भी होता है,
जो होते निर्दोष
ज्यादातर उन्हें ही धोता है।
याद है न साइमन
कमीशन का बहिष्कार,
लालाजी का प्राण
ले लिया लाठी का प्रहार।
लाठी एक है पर
इसके गुण हजार,
उपयोग करें इसका
बड़ा सोच - विचार।
किसान का स्वाभिमान है लाठी,