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कविता: दिवाली की एक रात (नीलम वन्दना, भोपाल, मध्य प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार नीलम वन्दना की एक कविता  जिसका शीर्षक है “दिवाली की एक रात”: 

ठिठुरती सी सुबह में एक दिन
अचानक नींद खुल गई
अलसाई आँखों को खोलने की
एक नाकाम सी कोशिश में क्योंकि फिर आज तुम सामने हो
 
सोचती हूँ मुद्दतो बाद मिला है मौका वजु करूँ डूब कर
तुम्हारे होने के अहसास में
या होश में आऊँ और कह दूँ कि
 
तुम्हारे होने से ये वक़्त
टूटती आतिशबाजी सा खूबसूरत है
जैसे तारों को जल्दी सुला दिया हो किसीने
सपनों वाली परीयों की
कहानी सुना कर
 
अलसुबह
तुम्हारे लिए लिखी कविता
यूँ ठंडे दही में डाल दी हो
मिश्री किसी ने
खिलखिलाना यूँ तुम्हारा
मेरी बेतुकी कविताएं सुनकर
जैसे कल के ढेर में मिल गया हो
एक नया पटाखा एक किसी ऐसे बच्चे को
जिसकी दीवाली
हम सी हैप्पी नही है
 
रात के बुझे दीये से अंगड़ाई
तुम्हारे दुबारा पुकारने में है
गंगा आरती सा संगीत
गूँजे तुम्हारे पुकारने में
इस साथ में "मैं" "मैं" रहूँ
और "तुम" "तुम" रहो
एक एक हाथ "हम" का थामे हुए हम दोनों हो
 
फिर ठहर जाना
तुम्हारी दुनिया में आकर
ठहरना क्योंकि
कदमों को अब मिलाना है
एक दाएं हाथ में
दूजे दाएं हाथ को थमाना है
इस लम्बे सफर के थकान में
टिकना है तुम्हारे कंधो पर
जैसे हो काशी की गंगा और
गंगा किनारे बसा बनारस
 
देखना है उस
काले आकाश में बिखरती
वो रोशनियाँ को जो तुम्हारी
पलकों पर पड़कर
और भी खूबसूरत हो जाती है
उन जगमगाती आँखों से
कुछ उजाले उधार चाहती हूँ
बस इतनी सी ही तो ख्वाहिश है जाना
मैं तुम्हारे इश्क़ में
दिवाली की बस एक रात होना चाहती हूँ !!!