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कविता: अनकहे अल्फाज (गीता चौहान, जशपुर, छत्तीसगढ़)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार गीता चौहान की एक कविता  जिसका शीर्षक है “अनकहे अल्फाज”:

राहें अलग पर मंजिल एक थी।

अभिलाषा अलग पर स्थिति एक थी।

कहीं सपने तो कहीं दरिए थे।

आगे बढ़ने के जरिए कम थे।

जिंदगी के होड़ में,

तुझे पाने की तलब थी।

कैसे बताऊं मेरी इस तलब में,

एक तड़प थी।

इश्क़ तो आंखों में थी।

कुछ तुझमें भी कुछ मुझमें भी।

शाम के बदलते रूप जैसी,

मुझे मिलने कि सुलग थी।

पर समय का फेर देख,

तड़प दोनों की अलग थी।

हम यहां तेरे दीदार को तड़पे।

तू वहां दूसरे के प्यार के लिए तड़पे।

समय फिर फेर बदलने लगा।

कुछ तुम तो कुछ हम बदलने लगे।

वो तड़प हवा में आकर मिल चुकी थी।

अब तुझे पाने की लालसा,

मन से धूल चुकी थी।

अब मैं तुझे नहीं,

समय को पाना चाहती थी।

जिसे तुमने पा ना सके।

मैं उसे पाना चाहती हूं।

अब सोचती हू,

कि क्यों हुआ इतना कुछ।

शायद ये भाग्य था मेरा।

राह में टकराए,

एक फरिश्ते दे गए जवाब मेरे।

सोचती क्या है तू,

गर्व कर तू खुद पर।

ये तेरा भाग्य नहीं है

सब तेरा कर्म का फल है।

भाग्यशाली हो तुम,

जो ले गए अनुभव।

जो हम न ले सके ताउम्र।

खुश रह,

और जिंदगी बना तू अपना।

शक्तिशाली है तू,

अब वक़्त हाथ थामे है तेरा।