पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार अमृता पांडे की एक कविता जिसका
शीर्षक है “अभिलाषा राम दरस की”:
इस बार मेरे रामजी जो घर आ जाए
सच में मेरी दिवाली, दिवाली हो जाए,
सदियों से बंजर
पड़ी ये धरा मुस्कुरा उठेगी
हृदय का संताप और निराशा मिटेगी,
युगों से पथ
निहारते इन नयनों की त्रास मिट जाए
इन प्यासे नयनों की सूखी अश्रु धारा पुनः बह जाए,
युग युग से
प्रतीक्षित क्षण के बंद द्वार खुल जाए
मौन अतृप्त से इन होठों को आवाज़ मिल जाए,
कुम्हलायी मन की
बगिया, रामदरस की प्यासी अखियां
सूखी बगिया और अंखियों को सिंचित विस्तार मिल जाए,
कलयुग में
हाहाकार है, अन्याय है अनाचार है
खुल जाए द्वार द्वापर का, ऐसा कोई घनश्याम आ जाए।
अब ख़त्म भी कर
दे जो राम वनवास
ऐसा कोई दशरथ का अवतार आ जाए,
त्रेता के वही
राम फिर बारम्बार आ जाएं
कि रामदरश की कल्पना सगुण और साकार हो जाए,
हर मन अति अधीर
है, त्रस्त पड़ी ये वसुंधरा,
अस्त्र सेना शस्त्र
से संकल्प सत्य मात्र से
अब शीघ्र ही उद्धार इसका हो जाए,
जब आएंगे राम
मेरे, जगमग हो जाएगी यह रामभूमि
दीप कई राहों में जल उठेंगे, उजियारा चहकेगा दोबारा
वीरान पड़ी कुटिया मेरी अब आबाद हो जाए
इस बार मेरे रामजी जो घर आ जाएं,
सच में मेरी
दिवाली, दिवाली हो जाए ....।
इस बार मेरे रामजी जो घर आ जाए
सच में मेरी दिवाली, दिवाली हो जाए,
हृदय का संताप और निराशा मिटेगी,
इन प्यासे नयनों की सूखी अश्रु धारा पुनः बह जाए,
मौन अतृप्त से इन होठों को आवाज़ मिल जाए,
सूखी बगिया और अंखियों को सिंचित विस्तार मिल जाए,
खुल जाए द्वार द्वापर का, ऐसा कोई घनश्याम आ जाए।
ऐसा कोई दशरथ का अवतार आ जाए,
कि रामदरश की कल्पना सगुण और साकार हो जाए,
अब शीघ्र ही उद्धार इसका हो जाए,
दीप कई राहों में जल उठेंगे, उजियारा चहकेगा दोबारा
वीरान पड़ी कुटिया मेरी अब आबाद हो जाए
इस बार मेरे रामजी जो घर आ जाएं,