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कविता: कोहिनूर (दीपा गुप्ता, हाजिनगर, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार दीपा गुप्ता की एक कविता  जिसका शीर्षक है “कोहिनूर”: 

आओ सुनाऊं एक कहानी, जो है बहुत पुरानी
आंध्र प्रदेश के गोलकुंडा से, निकला एक बेसकीमती पत्थर
जिसकी चमक से चौंधियां जाती सबकी आंखें
 
जुड़ी है उसे कई कहानियां मान्यताएं कई
जिसे पाना हर एक का सपना
पर देखो किस्मत इसकी
गया ऐ जिसके पास भी
हो गया उसका सब तबाह ...
 
उसकी खूबसूरती को देख
नादिरशाह ने रखा उसका नाम
कोहिनूर यानी रोशनी का पहाड़
क़ीमत उसकी इतनी
भर जाए पुरी दुनिया का पेट
इसलिए चाहता हर कोई
पाना उस बहुमूल्य रत्न को
 
था वो गौरव हमारे देश का
पड़ी ऐसी कुदृष्टि उन अंग्रेजों की
छीन ले गए वो उसे सात समुंदर पार
 
और ....
भेंट स्वरूप पेश किया गया
बकिंघम पैलेस में महारानी विक्टोरिया को
उसकी चमक को और बढ़ाने के लिए
हुई उसकी पुनः कटाई - छटाई
 
हो गए उसके दो टुकड़े
एक बना ताज की शोभा
दूसरा बना टॉवर ऑफ लंदन की शान
 
सोचो जरा ...
अगर होती उसमें भी जान
बोल सकता वो भी हमारी तरह
तो सुनाता वो अपनी दास्तां
पिंजरे को तोड़, अपने को पुराकर
गिरते पड़ते ....
बस चाहता अपने घर लौट आना ...।।