पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सपना की एक कविता जिसका शीर्षक है “जब तक”:
दुनियां वालों की
नजरों में ,
हम तब तक अच्छे
रहते हैं।
लगा के ताला
जुबां पर अपनी,
हम जब तक मौन
रहते हैं।
मर मर कर जीते हैं जब तक,
तब तक सब खुश रहते हैं।
अपने भी आंख दिखाते हैं ,
जब अपने लिए हम जीते हैं।
जिनकी हां में
हां मिलाते,
हम उनके दिल में
रहते हैं।
अपने दिल की
जुबां पे लाते,
तो वाचाल हमें सब
कहते हैं।
सेवा खुशामद करते सबकी ,
हमें कार्यकुशल सब कहते हैं।
अपने लिए कुछ कर बैठे तो,
मक्कार
हमें सब कहते हैं।
रूखी सूखी खाते
तब तक,
समझदार सब कहते
हैं।
अपनी खुशी से
खर्च करें तो,
सब नासमझ हमें
कहते हैं।
जब तक रहते साड़ी घूंघट में,
हमें संस्कारी सब कहते हैं।
शान से थोड़ा निकलें जो,
सबकी नजरों में खलते हैं।
मार पीट अपशब्द
सहें तो,
सबके मन के रहते
हैं।
आवाज उठाते जब
हिंसा की,
सब बेहया हमें
कहते हैं।
मन्द मन्द मुस्काए तो,
हम सबको अच्छे लगते हैं ।
खुल हंस लें जरा कभी तो,
निर्लज्ज हमें सब कहते है।
जब सिर को झुका
कर चलते हैं ,
हम सबको अच्छे
लगते हैं।
महफ़िल में जो
ठुमके लगा दें,
तो बेशर्मी इसको
कहते हैं।
बहू को बेटी कहते हैं सब,
हम जब तक सब सहते हैं।
अपना दर्द बयां कर दे तो,
बहू गलत सब कहते हैं।