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कविता: पतंग (हर प्रसाद रोशन, नैनीताल, उत्तराखंड)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार हर प्रसाद रोशन की एक कविता  जिसका शीर्षक है “पतंग”:

कितनी सुंदर हो पतंग,

बिन डोर के है बेकार।

नया खेवन के लिए भी,

है जरूरी इक पतवार।

डोर थाम कर पतंग यह,

आसमान तक जाती है।

उड़ती है, लहराती है,

साथ गगन का पाती है।

इस पार से उस पार तक,

नैया आती जाती है।

पतवार के सहारे ही,

मंजिल अपनी पाती है।

फूल-फूल के जुड़ने से,

बनती है माला प्यारी।

आपस के योगदान से,

चलती है दुनिया सारी।