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कविता: स़ंघर्ष (राजीव़ भारती, गौतम़ ब़ुद्ध नगर, नोयडा, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार राजीव़ भारती की एक कविता  जिसका शीर्षक है “स़ंघर्ष”: 

स़ंघर्ष ही जीवन है
बिना स़ंघर्ष तो जीवन निष्क्रिय है
कहते हैं ना, कि सोना जितना तपता है
उतना ही और निखरता है
तो स़ंघर्ष से ही मानव जीवन अधिक संवरता है
और नित नये आयाम का वह सृजन करता है
वृद्धि होती ज्ञान की,संकल्प शक्ति का संचार होता है
सबकुछ गर सहजता से उपलब्ध हो जाय, तो फिर
जीवन में स़ंघर्ष कहां और न होंगे नूतन अनुसंधान
व़ सारे कार्य अनुभूत होंगे आसान
टाटा, बिड़ला, अंबानी ने भी क़िचित्
जीवन में अत्यधिक स़ंघर्ष किया
तब जाकर जीवन में कहीं यह मुकाम हासिल किया
चाहे खेल ज़गत् के खिलाड़ी हों या फिल्म जगत के कलाकार,
शिक्षार्थी, नेता या फिर सीमा के पहरेदार
करते हैं स़ंघर्ष सभी, तभी जीवन में सफलता पाते हैं
बिना स़ंघर्ष वाले तो,कहीं बीच राह में अंट़क जाते हैं
चींटी भी दाना ढोने की खातिर करती कितना स़ंघर्ष
सच मानो, तो सबके जीवन में शामिल होता स़ंघर्ष
कोई कमतर तो कोई ज्यादा करता है स़ंघर्ष